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Sunday, 22 April 2012

होगा टीकाकरण, चहकेंगे नौनिहाल

Article contributed by Mr. Raju Kumar, Principal Correspondent, The Sunday Indian, Bhopal, Madhya Pradesh


मध्य प्रदेश में टीकाकरण कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए कोशिशें जारी है 
मध्य प्रदेश में शिशु मृत्यु दर और बाल मृत्यु दर दूसरे राज्यों के मुकाबले कहीं ज्यादा है. इसकी बड़ी वजह है टीकाकरण का अभाव. प्रदेश में टीकाकरण की कमी की वजह से हर साल हजारों बच्चे असमय काल के गाल में समा जाते हैं. ये बच्चे उन बीमारियों का शिकार हो जाते हैं, जिन्हें टीके के माध्यम से रोका जा सकता है. दुनियाभर में बच्चों के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था यूनीसेफ ने मध्य प्रदेश में टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाने के मद्देनजर लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) और मध्य प्रदेश सरकार के साथ मिलकर 'मीडिया की सहभागिता' कार्यक्रम की शुरुआत भी की है ताकि मीडिया के माध्यम से लोगों तक टीकाकरण के लाभ के बारे में जानकारी पहुंचाई जा सके. मध्य प्रदेश में यूनीसेफ की प्रतिनिधि डॉ. तान्या गोल्डनर कहती हैं, 'भारत में हर दिन 5,000 बच्चे विभिन्न बीमारियों की वजह से मौत के मुंह में चले जाते हैं. इनमें से 65 फीसदी बच्चों को टीकाकरण से बचाया जा सकता है.'


सूचना और जागरूकता के अभाव में प्रदेश के आधे से ज्यादा बच्चे टीकाकरण से वंचित हैं. टीकाकरण का दायरा बढ़ाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 2011 को 'टीकाकरण वर्ष' घोषित किया है. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के संचालक डॉ. मनोहर अगनानी कहते हैं, 'टीकाकरण के प्रति लोगों को जागरूक करने एवं इसके लिए मूलभूत संसाधन उपलब्ध कराने का प्रयास इस साल किया जा रहा है.' मध्य प्रदेश में पिछले कुछ सालों में टीकाकरण की स्थिति में सुधार हुआ है, पर उसे संतोषजनक नहीं माना जा सकता है. 2002-04 में जिला स्तरीय स्वास्थ्य सर्वे-2 में 30.4 फीसदी बच्चों का ही संपूर्ण टीकाकरण हो पाया था. यह 2007-08 में किए गए जिला स्तरीय स्वास्थ्य सर्वे-3 में बढ़कर 36.2 फीसदी तक पहुंच गया. इस बीच लगभग पांच साल में 5.8 फीसदी टीकाकरण ही बढ़ पाया था, जबकि इसके महज एक साल बाद 2009 में प्रदेश में संपूर्ण टीकाकरण का स्तर 42.9 फीसदी पर पहुंच गया. हालांकि यह राष्ट्रीय औसत 61 फीसदी से बहुत पीछे है, पर एक से दो साल के बीच स्थितियों में तेजी से हुए सुधार से यह संभावना जगी है कि मध्य प्रदेश को राष्ट्रीय औसत तक पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगने वाला है.

प्रदेश में टीकाकरण की स्थिति में सुधार के लिए यूनीसेफ राज्य सरकार को लंबे समय से मदद कर रहा है. पिछले दिनों यूनीसेफ ने जबलपुर एवं भोपाल में इग्नू एवं स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर पत्रकारों के लिए कार्यशाला का आयोजन किया. डॉ. तान्या गोल्डनर कहती हैं, 'टीकाकरण अभियान में मीडिया का सहयोग लेने से गांव के लोगों में टीकाकरण के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और कार्यकर्ताओं लिए यह उत्साहवर्धन का काम करेगा. टीकाकरण के प्रति जनमानस में जागरूकता बहुत जरूरी है, क्योंकि इससे जीवन की रक्षा होती है, खासकर ऐसे राज्य में जहां शिशु मृत्यु दर देश में सबसे ज्यादा है. हमारा उद्देश्य एक-एक बच्चे तक पहुंचना है, इसके लिए मीडिया एवं पत्रकारों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हैं.'

यूनीसेफ के संचार अधिकारी अनिल गुलाटी कहते हैं, 'हमारा उद्देश्य मीडिया के माध्यम से लोगों तक टीकाकरण के बारे में सही जानकारी पहुंचाना है, जिससे कि लोगों के पूर्वाग्रह खत्म हों और वे नियमित टीकाकरण में अपने बच्चों को लेकर आएं. इसके अलावा कहीं अच्छे प्रयास हुए हैं, तो उसकी पूरी जानकारी मीडिया में आए, जिससे कि अन्य जगहों के स्वास्थ्य कार्यकर्ता प्रेरणा लेकर टीकाकरण का दायरा बढ़ा सकें.' टीकाकरण से तपेदिक, पोलियो, डिप्थीरिया, काली खांसी, टेटनस, हेपटाइटिस-बी, खसरा एवं जापानी इंसेफलाइटिस जैसी जानलेवा बीमारियों से बच्चों की रक्षा होती है. शिशु मृत्यु दर एवं बाल मृत्यु दर के आंकड़ों में कमी लाने के लिए इन बीमारियों से बचाव बहुत महत्वपूर्ण है.

प्रदेश में अभी सिर्फ 12 जिले ही ऐसे हैं, जहां 50 फीसदी से ज्यादा संपूर्ण टीकाकरण हो पाया है. 5 जिलों में 40 से 50 फीसदी, 15 जिलों में 30 से 40 फीसदी एवं 18 जिलों में 30 फीसदी से भी कम टीकाकरण हुआ है. बालाघाट जिले में 90 फीसदी से भी ज्यादा टीकाकरण हुआ है. एक आदिवासी बहुल एवं दुर्गम इलाके वाले जिले में टीकाकरण की इस सफलता ने देश के लोगों का ध्यान आकर्षित किया है और उसे मॉडल मानते हुए उसी तरह के प्रयास अन्य जिलों में किए जाने की सिफारिश की जा रही है.

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