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Monday, 2 January 2012

नौनिहाल करेंगे टीबी को 'टाटा'


Article by : Mr.Raju Kumar
 राजु कुमार | Issue Dated: दिसंबर 9, 2011, मध्य प्रदेश
Source: The Sunday Indian, Bhopal
मध्य प्रदेश के आधे से ज्यादा यानी 52 लाख बच्चे कुपोषित हैं और लगभग 8.8 लाख बच्चे अतिगंभीर कुपोषण के शिकार. अतिगंभीर कुपोषित बच्चों में सामान्य बीमारियों के साथ-साथ टीबी होने की आशंका कई गुना ज्यादा होती है. समय से उचित इलाज की सुविधा न होना, जानलेवा साबित होती है. सरकार ने अब यह निर्णय लिया है कि पोषण पुनर्वास केंद्र में आने वाले सभी अतिगंभीर कुपोषित बच्चों की टीबी जांच कराई जाए. साथ ही साथ कांटेक्ट ट्रेसिंग के माध्यम से उन बच्चों की मां की भी टीबी की जांच हो. राज्य टीबी अधिकारी डॉ. बीएस ओहरी कहते हैं, 'टीबी का मुख्य कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना एवं टीबी के मरीज के संपर्क में आना है.'

देश की 40 फीसदी आबादी टीबी के जीवाणु से संक्रमित है. हर डेढ़ मिनट पर एक, और एक दिन में 1,232 लोगों की मौत टीबी से होती है. डॉ. ओहरी बताते हैं, 'देश को टीबी से मुक्त कराने के लिए पुनरीक्षित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम चलाया जा रहा है. इसके तहत 70 फीसदी नए मामलों को ढूंढऩे तथा 85 फीसदी क्योर रेट का लक्ष्य रखा गया है. हमारी कोशिश है कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा तय सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य यानी 2015 तक टीबी से होने वाली मौतों की संख्या आधी करने के लक्ष्य को हासिल कर लिया जाए.'

प्रदेश के सहरिया आदिम जनजाति बहुल श्योपुर और शिवपुरी में टीबी के मरीजों की संख्या बहुत ज्यादा है. श्योपुर के पोषण पुनर्वास केंद्र में कार्यरत फीडिंग डिमॉंस्ट्रेटर आरती पाठक कहती हैं, 'अप्रैल से अब तक यहां 300 बच्चे भर्ती हुए. पहले सभी बच्चों की टीबी स्क्रीनिंग नहीं की जाती थी,  उसके बावजूद 20 बच्चे टीबी से पीडि़त थे. अब जब सभी बच्चों की टीबी स्क्रीनिंग की जाएगी तो ऐसे और बच्चे मिलेंगे.' शिवपुरी पोषण पुनर्वास केंद्र पर तैनात फीडिंग डिमॉंस्ट्रेटर आरती तिवारी कहती हैं, 'पिछले तीन महीने में यहां 104 बच्चे भर्ती हुए थे और अधिकांश बच्चों में टीबी के लक्षण पाए गए थे.' मंदसौर जिले में सौ से ज्यादा स्लेट-पेंसिल कारखाने हैं. इस जिले में भी टीबी के मरीज बहुत ज्यादा हैं. मंदसौर के पोषण पुनर्वास केंद्र में तैनात फीडिंग डिमॉंस्ट्रेटर सविता मूंदड़ा कहती हैं, 'पिछले तीन महीने में यहां 66 बच्चे भर्ती हुए और लगभग सभी टीबी से ग्रस्त थे. उनकी मां की भी जांच की गई और वे सभी टीबी की मरीज निकलीं.'

सूबे में 256 पोषण पुनर्वास केंद्र संचालित हैं, जहां अतिगंभीर कुपोषित बच्चों को 14 दिन तक भर्ती कर इलाज किया जाता है. इन 256 केंद्रों पर साल में लगभग 70 हजार बच्चों को भर्ती कर इलाज किया जा सकता है. बच्चों को टीबी से बचाने के लिए किए जा रहे इस सराहनीय प्रयास में कई बड़ी चुनौतियां हैं, जिनके समाधान के बिना अभियान की सफलता मुश्किल है. सबसे बड़ी चुनौती है पोषण पुनर्वास केंद्र में टीबी के लिए चिह्नित बच्चे के परिवार की बजाए सिर्फ मां की टीबी की जांच, जबकि योजना में ऐसे बच्चे के पूरे परिवार एवं उसके लगातार संपर्क में रहने वाले लोगों की भी जांच की बात कही गई है. टीबी से ग्रस्त बच्चे पोषण पुनर्वास केंद्र में अन्य सामान्य बच्चों के साथ 14 दिन तक रहते हैं, इसलिए वहां अतिरिक्त सावधानी और टीबी ग्रस्त बच्चे के मुंह पर कपड़ा रखना अनिवार्य किए जाने की जरूरत है. जब 14 दिन बाद बच्चा घर जाता है तो उसे छह माह तक डॉट्स की दवाइयां नियमित दी जा रही हैं या नहीं, इसकी मॉनिटरिंग की जानी चाहिए, क्योंकि गरीब तबके से आने वाले परिवार रोजगार के लिए पलायन करते हैं. उनके पलायन से न केवल अन्य बच्चों में भी टीबी के जीवाणु फैल सकते हैं, बल्कि बच्चे की सामान्य टीबी भी खतरनाक मल्टी ड्रग रेसिस्टेंस में बदल सकती है. सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि पोषण पुनर्वास केंद्रों के माध्यम से 10 फीसदी से भी कम अतिगंभीर कुपोषित बच्चों की टीबी जांच संभव हो पाई है, बाकी 90 फीसदी अतिगंभीर कुपोषित बच्चों की टीबी की जांच के लिए वृहद योजना पर काम करने की जरूरत है 

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