Media4Child

Media4child blog is an initiative by IGNOU and UNICEF to engage with stakeholders on social media discourse about public health and human development issues. This unique initiative is designed to encourage columnists, academicians, research scholars and correspondents from media to contribute positively through their commentary, opinion articles, field experiences and features on issues of child survival, adolescents, girl child, mother and child and immunisation programme.

Pages

Monday, 29 August 2011

सालभर से टीकों का टोटा

- आदिवासी बहुल खालवा के कई गांवों में साल भर से नहीं पहुंची एएनएम
- गर्भवती और नवजात बच्चों को नहीं लगे टीटनेस व अन्य टीके
- सरकारी दवाईयों को बाजार में बेच रही हैं एएनएम

आसिफ सिद्दकी, खंडवा  

विशेष अनुसूची के क्षेत्र खालवा में निवास करने
वाली प्राचीन जनजाति की गर्भवती महिलाएं और बच्चे टीकों से वंचित हैं।
ब्लॉक के दर्जनों गांव में एएनएम नहीं होने से कोरकुओं के स्वास्थ्य से
खिलवाड़ हो रहा है। स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में आदिवासी अपने रोग
बढ़ा रहे हैं। वहीं सरकार द्वारा मुहैया कराई गई दवाईयों को कुछ एएनएम
बेचने मे लगे हैं।


जिले के आदिवासी बहुल खालवा में स्वास्थ्य सुविधाएं दम तोड़ती नजर आ रही
हैं। ब्लॉक के दर्जनों गांवों में स्वास्थ्य अमला पहुंच ही नहीं पाता।
ऐसे में गर्भवती महिलाओं और बच्चों को लगने वाले जरूरी टीके नहीं लग पा
रहे हैं। पत्रिका टीम ने ऐसे ग्रामों का दौरा किया जहां स्वास्थ्य
सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही हैं। ब्लॉक के दूरस्थ वनग्राम महलू सहित
क्षेत्र के ककडिय़ा, माथनी, विक्रमपुर, खातेगांव, समसगढ़, झिरपा आदि में
एएनएम की नियुक्ति ही नहीं है। एएनएम नहीं होने से आदिवासियों को
स्वास्थ्य लाभ नहीं मिल पा रहा है। स्वास्थ्य को लेकर शासन द्वारा विशेष
निगरानी वाले इन क्षेत्रों की हालत सबसे खराब बनी हुई है। माथनी की
कमलाबाई पति दयाराम को चार माह का गर्भ हैलेकिन अभी तक उसे एक भी टीका
नहीं लगा है। इसी गांव की एक अन्य महिला को छह माह का गर्भ होने तक एक भी
टीका नहीं लग पाया है।

डिपो से बेचते हैं दवाई

ग्राम झिरपा के अधिकांश लोगों का कहना है यहां की एएनएम दवाईयां देने के
१५ से २० रुपए वसूल करती है। जबकि शासन द्वारा इन ग्रामों में अपने डिपो
बना रखे हैं जहां से आदिवासियों को मुफ्त गोली दवाई और इंजेक्शन दिए जाते
हैं। कोनकू पिचूकु मोबाइल वेन के तौसीफ शाह ने जब इस संबंध में एएनएम से
चर्चा की तो उन्हें बताया कि हम बाजार से दवाईखरीदकर लाते हैं उसी का
शुल्क वसूल करते हैं। जबकि चबूतरा की एएनएम सुकरई बाई ने बताया हमें
दवाइयां मिलती है और यह दवाईयां हम ग्रामीणों में मुफ्त वितरित करते हैं।
सेमलिया के भैयालाल के अनुसार पत्नी मुन्नीबाई की तबीयत खराब होने पर
आंगनवाड़ी पहुंच से उन्हें दो रुपए में एक गोली दी गई।

घाव को बना रहे हैं नासूर

आदिवासी मंहगे इलाज से बचने के लिए अपने मामूली घावों को भी नासूर की
शक्ल दे रहे हैं। सेमलिया के रामचरण के पैर में चोट लग गई थी उसने घाव को
धूल मिट्टी से बचाने के लिए बीड़ी के बंडल का रेपर लगा लिया। इसी प्रकार
गांव के टाटू भैयालाल के पैर में बांस से घाव हो गया था। घाव पर खुजली
चलने पर पेट्रोल डाल लिया इससे पैर घाव और गहरा हो गया। अब बंगाली डॉक्टर
से इसका इलाज करा रहे हैं।

किसे कौन सा टीका

- गर्भवती महिलाओं को टीटी-1 और टीटी-2 (टीटनेस) टीके लगाए जाते हैं। यह
टीके तीन माह के अंतराल से एएनएम लगाती हैं।

- नवजात बच्चों को बीसीजी, डीपीटी, ओपीबी-3 एवं मिजल्स के टीके लगाए जाते
हैं।बच्चों को बीमारियों से सुरक्षित रखने के लिए यह टीके आवश्यक हैं।

लगातार रख रहे हैं नजर

विभाग द्वारा गांवों में पदस्थ एएनएम कार्यकर्ताओं पर लगातार नजर रखी जा
रही है। लापरवाही बरतने वाली पांच एएनएम का पिछले माह वेतन रोका गया है।
जिन क्षेत्रों से दवाई के नाम राशि लेने की बात आई है वहां इसकी जांच
कराई जाएगी। जिन क्षेत्रों में कर्मचारी नहीं है वहां हर माह शिविर लगाकर
टीकाकरण किया जा रहा है।
डा. शैलेंद्र कटारिया, बीएमओ खालवा
--------------------------------------------
आसिफ मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में राजस्थान पत्रिका के साथ काम कर रहे हैं. 

मध्य प्रदेश में टीकाकरण बढ़ा

मध्यप्रदेश में टीकाकरण अभियान को व्यापक समर्थन मिला है.  महिला एवं बाल विकास विभाग ने राष्ट्रीय पोषण संस्थान हैदराबाद से मध्यप्रदेश में बाल एवं मातृत्व स्वास्थ्य पर एक अध्ययन करवाया है. इस अध्ययन की रिपोर्ट हाल ही में जारी कर दी गयी है. इस अध्ययन में टीकाकरण का का प्रतिशत ८४ हो गया है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के तीसरे दौर के मुताबिक यह ८४ प्रतिशत था. मध्यप्रदेश में कवरेज इवेलुशन सर्वे के मुताबिक यह ४२ प्रतिशत था. इस सर्वे की मानें तो टीकाकरण के क्षेत्र में मध्य प्रदेश में काफी अच्छी तस्वीर सामने आती है.

मध्यप्रदेश में टीकाकरण तमाम कोशिशों  के बावजूद 42 प्रतिशत  तक ही पहुंच पाया था । प्रदेश  में 28 प्रतिशत  अभिभावकों को टीके की जरूरत ही महसूस नहीं होती। यूनिसेफ की रिपोर्ट कहती है कि देश  में हर दिन 5 हजार बच्चों की मौत हो जाती है, और इनमें से 65 प्रतिशत  मौतें ऐसी हैं जिन्हें रोका जा सकता है। यानी टीकाकरण बाल और शिशु मृत्यु दर को कम करने में प्रभावी साबित हो सकता है,

टीकाकरण पर भी लोगों की राय दिलचस्प नजर आती है। कवरेज इवेल्यूशन  सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक जहां 28 प्रतिशत  लोगों को इसकी जरूरत ही नहीं लगती और दूसरी ओर 26 फीसदी को जानकारी ही नहीं है। दस प्रतिशत को इस बात की जानकारी नहीं है कि टीकाकरण के लिए जाना कहां है। आठ प्रतिशत  लोगों को समय उचित नहीं लगता, और लगभग इतने ही टीके के साइड इफेक्ट से डरकर नहीं लगवाते हैं। 6 प्रतिशत लोगों के पास समय नहीं है और 1 प्रतिशत लोग रूपयों की कमी से ऐसा नहीं कर पाते।

तो राष्ट्रीय  पोषण संस्थान के सर्वे के बाद  क्या अब यह माना जाना चाहिए कि लोग टीकाकरण के लिए न केवल जागरूक हो रहे हैं बल्कि आगे भी आ रहे हैं.

इसमें कोई शक नहीं है कि टीके बीमारियों की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इसके लिए दोनों स्तर पर काम करने की जरूरत है। लेकिन सबसे जरुरी बात यह है कि उन सोलह प्रतिशत लोगों को अब भी खोजने की जरुरत है जो पूर्ण टीकाकरण से बचे हुए हैं.  सरकार को चाहिए कि वह दूरस्थ अंचल तक टीकाकरण की सुविधाएं सुरक्षित रूप से पहुंचाए वहीं समाज को भी अपनी ओर से बच्चों के स्वास्थ्य के बेहतर स्वास्थ्य के लिए आगे आना चाहिए।

राकेश मालवीय

 राष्ट्रीय  पोषण संस्थान के सर्वे  के नतीजों पर आपकी क्या राय है..क्या वाकई मध्य प्रदेश में टीकाकरण की स्थिति बेहतर हुई है ?